अजीब से है ये सिलसिले जिंदगी के
कुछ पाने की तम्मना में बहुत कुछ छीन लेती है यह जिंदगी
जो अपने थे वो पराए बन गए
और पराए थे वे अपने बन गए,
चलते जिन्दगी के।।
जिन पलो में दिल खोलकर हस लिया करते थे,
आज उन्ही पलो को याद करके आँखे नम कर लेते है।
बचपन की एक बात बहुत अच्छी थी यार
कोई जात ना पूछता था न कोई धरम
अपना दोस्त है कमीना यही कहते थे।
बचपन में पूछते थे क्या बनना है तुम्हे
और हम डॉक्टर और इंजीनियर कहते थे
आज कोई पूछे हमे क्या बनना है तुम्हे
तो बस यही कहेंगे स्टूडेंट् और दोस्त बनना है
जो मजा ए कमीने सुनने में था
वो मजा आज सर सुनने में कहा
हमे भी मिल जाये अलादीन की तरह कोई चिराग
तो हम भी मांग ले तीन चीज़े,
बचपन, वही पुराने दोस्त और खड़ूस मगर प्यारे शिक्षक
_ Aryan suvada
